जो उस तरफ़ से इशारा कभी किया उस ने
मैं डूब जाऊँगा दरिया को पार करते हुए
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किसी ने भेज कर काग़ज़ की कश्ती
ऐ मिरे पायाब दरिया तुझ को ले कर क्या करूँ
जैसे कोई काट रहा है जाल मिरा
कहीं कहीं से पुर-असरार हो लिया जाए
नहीं है बहर-ओ-बर में ऐसा मेरे यार कोई
शक्ल सहरा की हमेशा जानी-पहचानी रहे
रखता नहीं है दश्त सरोकार आब से
बात बढ़ती गई आगे मिरी नादानी से
कुछ ऐसे देखता है वो मुझे कि लगता है
राह से मुझ को हटा कर ले गया
हैं और कई रेत के तूफ़ाँ मिरे आगे