ऐ मिरे पायाब दरिया तुझ को ले कर क्या करूँ
नाख़ुदा पतवार कश्ती बादबाँ रखते हुए
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अब और देर न कर हश्र बरपा करने में
पस्त-ओ-बुलंद में जो तुझे रिश्ता चाहिए
यूँही बुनियाद का दर्जा नहीं मिलता किसी को
झलकती है मिरी आँखों में बेदारी सी कोई
कोई इक ज़ाइक़ा नहीं मिलता
मिरी गिरफ़्त में है ताएर-ए-ख़याल मिरा
मेरी पहचान बताने का सवाल आया जब
मुझे ग़ुबार उड़ाता हुआ सवार लगा
राह से मुझ को हटा कर ले गया
मिरी सिफ़ात का जब उस ने ए'तिराफ़ किया
किसी की राह में आने की ये भी सूरत है