किसी की राह में आने की ये भी सूरत है
कि साया के लिए दीवार हो लिया जाए
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मेरी पहचान बताने का सवाल आया जब
अपनी तस्वीर के इक रुख़ को निहाँ रखता है
उबल पड़ा यक-ब-यक समुंदर तो मैं ने देखा
कैसा इंसाँ तरस रहा है जीने को
मिरी गिरफ़्त में है ताएर-ए-ख़याल मिरा
साँसों के आने जाने से लगता है
क़दमों से मेरे गर्द-ए-सफ़र कौन ले गया
शक्ल सहरा की हमेशा जानी-पहचानी रहे
पुरखों से चली आती है ये नक़्ल-ए-मकानी
चाहता है वो कि दरिया सूख जाए
मेरी कश्ती को डुबो कर चैन से बैठे न तू
जो मुझ पे भारी हुई एक रात अच्छी तरह