चाहता है वो कि दरिया सूख जाए
रेत का व्यापार करना चाहता है
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यारों ने मेरी राह में दीवार खींच कर
मौजूदगी का उस की असर होने लगा है
जो मुझ पे भारी हुई एक रात अच्छी तरह
किसी ने भेज कर काग़ज़ की कश्ती
जैसे कोई काट रहा है जाल मिरा
अब जो आज़ाद हुए हैं तो ख़याल आया है
एक इक लफ़्ज़ से मअनी की किरन फूटती है
मैं तिरे वास्ते आईना था
ये लोग किस की तरफ़ देखते हैं हसरत से
देखने सुनने का मज़ा जब है
मिरी गिरफ़्त में है ताएर-ए-ख़याल मिरा
पेड़ अगर ऊँचा मिलता है