मेरी पहचान बताने का सवाल आया जब
आइनों ने भी हक़ीक़त से मुकरना चाहा
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ताबीरों से बंद क़बा-ए-ख़्वाब खुले
यूँही बुनियाद का दर्जा नहीं मिलता किसी को
उबल पड़ा यक-ब-यक समुंदर तो मैं ने देखा
मौजूदगी का उस की असर होने लगा है
कुछ ऐसे देखता है वो मुझे कि लगता है
हिसार-ए-जिस्म मिरा तोड़-फोड़ डालेगा
मिरी गिरफ़्त में है ताएर-ए-ख़याल मिरा
जैसे कोई काट रहा है जाल मिरा
झलकती है मिरी आँखों में बेदारी सी कोई
एक इक लफ़्ज़ से मअनी की किरन फूटती है
चले थे जिस की तरफ़ वो निशान ख़त्म हुआ
मिली राह वो कि फ़रार का न पता चला