यूँही बुनियाद का दर्जा नहीं मिलता किसी को
खड़ी की जाएगी मुझ पर अभी दीवार कोई
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रखता नहीं है दश्त सरोकार आब से
उस ने जब दरवाज़ा मुझ पर बंद किया
आगे आगे शर फैलाता जाता हूँ
न मिरा ज़ोर न बस अब क्या है
कहीं कहीं से पुर-असरार हो लिया जाए
अब जो आज़ाद हुए हैं तो ख़याल आया है
पस्त-ओ-बुलंद में जो तुझे रिश्ता चाहिए
मेरी पहचान बताने का सवाल आया जब
ऐ मिरे पायाब दरिया तुझ को ले कर क्या करूँ
अपनी तस्वीर के इक रुख़ को निहाँ रखता है
बर्क़ का ठीक अगर निशाना हो
ज़बान अपनी बदलने पे कोई राज़ी नहीं