अपनी क़िस्मत का बुलंदी पे सितारा देखूँ
ज़ुल्मत-ए-शब में यही एक नज़ारा देखूँ
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Rahat Indori
Habib Jalib
Anwar Masood
Gulzar
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(639) Peoples Rate This
वही साहिल वही मंजधार मुझ को
पेड़ अगर ऊँचा मिलता है
कितना भी रंग-ओ-नस्ल में रखते हों इख़्तिलाफ़
रखता नहीं है दश्त सरोकार आब से
शक्ल सहरा की हमेशा जानी-पहचानी रहे
माज़ी! तुझ से ''हाल'' मिरा शर्मिंदा है
हिसार-ए-जिस्म मिरा तोड़-फोड़ डालेगा
अब जो आज़ाद हुए हैं तो ख़याल आया है
न मिरा ज़ोर न बस अब क्या है
क़दमों से मेरे गर्द-ए-सफ़र कौन ले गया
उस ने जब दरवाज़ा मुझ पर बंद किया
ये लोग किस की तरफ़ देखते हैं हसरत से