हिसार-ए-जिस्म मिरा तोड़-फोड़ डालेगा
ज़रूर कोई मुझे क़ैद से छुड़ा लेगा
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दूसरा कोई तमाशा न था ज़ालिम के पास
चले थे जिस की तरफ़ वो निशान ख़त्म हुआ
ये लोग किस की तरफ़ देखते हैं हसरत से
हैं और कई रेत के तूफ़ाँ मिरे आगे
मिरी सिफ़ात का जब उस ने ए'तिराफ़ किया
यारों ने मेरी राह में दीवार खींच कर
आगे आगे शर फैलाता जाता हूँ
ये दौर है जो तुम्हारा रहेगा ये भी नहीं
पुरखों से चली आती है ये नक़्ल-ए-मकानी
रख दिया वक़्त ने आईना बना कर मुझ को
पहले चिंगारी उड़ा लाई हवा