ये दौर है जो तुम्हारा रहेगा ये भी नहीं
कोई ज़माना था मेरा गुज़र गया वो भी
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पहले चिंगारी उड़ा लाई हवा
वही साहिल वही मंजधार मुझ को
मेरी कश्ती को डुबो कर चैन से बैठे न तू
दिल ने तमन्ना की थी जिस की बरसों तक
न जाने क़ैद में हूँ या हिफ़ाज़त में किसी की
एक इक लफ़्ज़ से मअनी की किरन फूटती है
साँसों के आने जाने से लगता है
बढ़ा जब उस की तवज्जोह का सिलसिला कुछ और
देखने सुनने का मज़ा जब है
मिली राह वो कि फ़रार का न पता चला
मेरी पहचान बताने का सवाल आया जब
उबल पड़ा यक-ब-यक समुंदर तो मैं ने देखा