खुशी Poetry (page 5)

गीत ख़ुशी का गाओ

सिद्दीक़ कलीम

ग़ाज़ा तो तिरा उतर गया था

सिद्दीक़ अफ़ग़ानी

टूट कर अंदर से बिखरे और हम जल-थल हुए

सिद्दीक़ा शबनम

तेरे मिलने से हम को ख़ुशी मिल गई

श्याम सुन्दर नंदा नूर

तुम्हारे नाम कर बैठे दिल-ओ-जाँ की ख़ुशी साहब

शुमाइला बहज़ाद

कोठे उजाड़ खिड़कियाँ चुप रास्ते उदास

शोहरत बुख़ारी

कभी वो रंज के साँचे में ढाल देता है

शोभा कुक्कल

गुज़र जाएँगे ये दिन बेबसी के

शोभा कुक्कल

शाम-ए-ग़म की सहर न हो जाए

शिव रतन लाल बर्क़ पूंछवी

हुआ जब जल्वा-आरा आप का ज़ौक़-ए-ख़ुद-आराई

शिव रतन लाल बर्क़ पूंछवी

ग़र्क़-ए-ग़म हूँ तिरी ख़ुशी के लिए

शिव दयाल सहाब

वो रक़्स करने लगीं हवाएँ वो बदलियों का पयाम आया

शेवन बिजनौरी

लाई हयात आए क़ज़ा ले चली चले

ज़ौक़

जो कहोगे तुम कहेंगे हम भी हाँ यूँ ही सही

ज़ौक़

लाई हयात आए क़ज़ा ले चली चले

ज़ौक़

सुख़न किया जो ख़मोशी से शायरी जागी

शहपर रसूल

कोई तो आ के रुला दे कि हँस रहा हूँ मैं

शाज़ तमकनत

सिमट सिमट सी गई थी ज़मीं किधर जाता

शाज़ तमकनत

मिरे नसीब ने जब मुझ से इंतिक़ाम लिया

शाज़ तमकनत

क्या करूँ रंज गवारा न ख़ुशी रास मुझे

शाज़ तमकनत

कोई तो आ के रुला दे कि हँस रहा हूँ मैं

शाज़ तमकनत

ज़माना याद रक्खेगा तुम्हें ये काम कर जाना

शायान क़ुरैशी

बात हो दैर-ओ-हरम की या वतन की बात हो

शायान क़ुरैशी

शुऊ'र-ए-कैफ़-ओ-ख़ुशी है ज़रा ठहर जाओ

शौकत परदेसी

हौसले की कमी से डरता हूँ

शौकत परदेसी

ये चुपके चुपके न थमने वाली हँसी तो देखो

शारिक़ कैफ़ी

उदास हैं सब पता नहीं घर में क्या हुआ है

शारिक़ कैफ़ी

एक मुद्दत हुई घर से निकले हुए

शारिक़ कैफ़ी

न कोई अपना ग़म है और न अब कोई ख़ुशी अपनी

शम्स फ़र्रुख़ाबादी

मिली जो दिल को ख़ुशी तो ख़ुशी से घबराए

शम्स फ़र्रुख़ाबादी

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