सूखे Poetry (page 8)

उन्हें ढूँडो

बुशरा एजाज़

मिरी दास्तान-ए-अलम तो सुन कोई ज़लज़ला नहीं आएगा

बेदिल हैदरी

खुला है जल्वा-ए-पिन्हाँ से अज़-बस चाक वहशत का

बयान मेरठी

ग़म्ज़ा-ए-मा'शूक़ मुश्ताक़ों को दिखलाती है तेग़

बयान मेरठी

था जो कभी इक शौक़-ए-फ़ुज़ूल

बासिर सुल्तान काज़मी

लोगो हम छान चुके जा के समुंदर सारे

बशीर फ़ारूक़ी

मेरी गो आह से जंगल न जले ख़ुश्क तो हो

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

दिल ख़ूँ है ग़म से और जिगर यक-न-शुद दो-शुद

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

दिल ख़ूँ है ग़म से और जिगर यक न-शुद दो शुद

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

नहीं इश्क़ में इस का तो रंज हमें कि क़रार ओ शकेब ज़रा न रहा

ज़फ़र

अब अपनी चीख़ भी क्या अपनी बे ज़बानी क्या

अज़रा परवीन

तुम हँसते क्यूँ हो

अज़रा अब्बास

क़ुबूल होती हुई बद-दुआ से डरते हैं

अज़लान शाह

मैं दस्तरस से तुम्हारी निकल भी सकता हूँ

अज़ीज़ नबील

मेरे रोने पे ये हँसी कैसी

अज़ीज़ लखनवी

मुझे कहाँ मिरे अंदर से वो निकालेगा

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

अपनी सारी काविशों को राएगाँ मैं ने किया

आज़ाद गुलाटी

एक वो ही शख़्स मुझ को अब गवारा भी नहीं

आतिफ़ ख़ान

रौनक़-ए-बेश-ओ-कम किस के होने से है

अतहर नफ़ीस

न शाम है न सवेरा अजब दयार में हूँ

अतहर नफ़ीस

न मंज़िल हूँ न मंज़िल-आश्ना हूँ

अतहर नफ़ीस

तुझ को ख़िफ़्फ़त से बचा लूँ पानी

अता आबिदी

नौ-जवान ख़ातून से

असरार-उल-हक़ मजाज़

एक दोस्त की ख़ुश-मज़ाक़ी पर

असरार-उल-हक़ मजाज़

ऐ मिरे ग़ुबार-ए-सर तू ही तो नहीं तन्हा राएगाँ तो मैं भी हूँ

असलम महमूद

कहीं पे क़ुर्ब की लज़्ज़त का इक़्तिबास नहीं

असलम आज़ाद

कहीं पे क़ुर्ब की लज़्ज़त का इक़्तिबास नहीं

असलम आज़ाद

रेत आँखों में भर गया दरिया

अासिफ़ अंजुम

23-मार्च अज़ान-ए-सुब्ह-ए-नियाज़

अशरफ़ जावेद

दिल किसी ख़्वाहिश का उकसाया हुआ

अशफ़ाक़ नासिर

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