दिल ख़ूँ है ग़म से और जिगर यक न-शुद दो शुद

दिल ख़ूँ है ग़म से और जिगर यक न-शुद दो शुद

लब ख़ुश्क हैं तो चश्म है तर यक न-शुद दो शुद

रुस्वा तो नाला कर के हुए लेकिन उस ने यार

दिल में तिरे किया न असर यक न-शुद दो शुद

अव्वल तो हम को ताक़त-ए-परवाज़ ही न थी

तिस पर बुरीदा हो गए पर यक न-शुद दो शुद

पाया न हम ने सूद मोहब्बत में यार की

उस पर भी पहुँचता है ज़रर यक न-शुद दो शुद

छिड़का मिरे जिगर पे नमक ग़ैर से रहा

पैवस्ता मिस्ल-ए-शीर-ओ-शकर यक न-शुद दो शुद

आवारा-जूँ सबा हूँ पर अब जुस्तुजू-ए-यार

रखती है मुझ को ख़ाक बसर यक न-शुद दो शुद

मुश्किल था देखना ही तिरा तिस पे रोज़-ए-वस्ल

लाई न चश्म ताब-ए-नज़र यक न-शुद दो शुद

नालाँ हम अपने अश्क के हाथों थे अब 'बक़ा'

बहने लगें हैं लख़्त-ए-जिगर यक न-शुद दो शुद

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