पल Poetry (page 2)

एक वीरान गाँव में

ज़ाहिद डार

बरगुज़ीदा हैं हवाओं के असर से हम भी

ज़हीर रहमती

फ़िराक़-ए-यार के लम्हे गुज़र ही जाएँगे

ज़हीर काश्मीरी

उतरे तो कई बार सहीफ़े मिरे घर में

ज़हीर ग़ाज़ीपुरी

ऐसे लम्हे पर हमें क़ुर्बान हो जाना पड़ा

ज़हीर ग़ाज़ीपुरी

दर्द इन दिनों यूँ चेहरा-ए-आलम पे सजा है

ज़हीर फ़तेहपूरी

ग़ुरूर-ओ-नाज़-ओ-तकब्बुर के दिन तो कब के गए

ज़हीर अहमद ज़हीर

जो बे-घर हैं उन्हें घर की दुआ देती हैं दीवारें

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र

हवा शाख़ों में रुकने और उलझने को है इस लम्हे

ज़फ़र इक़बाल

मैं ज़र्द आग न पानी के सर्द डर में रहा

ज़फ़र इक़बाल

खिड़कियाँ किस तरह की हैं और दर कैसा है वो

ज़फ़र इक़बाल

अगर इस खेल में अब वो भी शामिल होने वाला है

ज़फ़र इक़बाल

साफ़ जज़्बों के हवाले से तो ग़म हैं लेकिन

ज़फर इमाम

धूप निकली कभी बादल से ढकी रहती है

ज़फर इमाम

कितने पेच-ओ-ताब में ज़ंजीर होना है मुझे

यूसुफ़ हसन

ख़ुश-फ़हमियों को ग़ौर का यारा नहीं रहा

याक़ूब उस्मानी

मुसाफ़िर चलते रहते हैं

वज़ीर आग़ा

दीवार-ए-गिर्या

वज़ीर आग़ा

दरमाँदा

वज़ीर आग़ा

चाँद का ख़्वाब उजालों की नज़र लगता है

वसीम बरेलवी

वक़्त-ए-रुख़्सत शबनमी सौग़ात की बातें करो

वलीउल्लाह वली

यूँ भी जीने के बहाने निकले

वली आलम शाहीन

हुस्न पर बोझ हुए उस के ही वा'दे अब तो

वली आलम शाहीन

फूल से मासूम बच्चों की ज़बाँ हो जाएँगे

वाली आसी

फूल से मासूम बच्चों की ज़बाँ हो जाएँगे

वाली आसी

यूँ तो तन्हाई में घबराए बहुत

वकील अख़्तर

रात क़ातिल की गली हो जैसे

वजद चुगताई

दुनिया अपनी मंज़िल पहुँची तुम घर में बेज़ार पड़े

वजद चुगताई

मावरा

वहीद अख़्तर

मौत की जुस्तुजू

वहीद अख़्तर

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