वस्त्र Poetry (page 4)
आदाब ज़िंदगी से बहुत दूर हो गया
शहूद आलम आफ़ाक़ी
पाया नहीं वो जो खो रहा हूँ
शाहिद कबीर
कुछ देर काली रात के पहलू में लेट के
शाहिद कबीर
हर आइने में बदन अपना बे-लिबास हुआ
शाहिद कबीर
फूलों से सज गई कहीं सब्ज़ा पहन लिया
शाहिद जमाल
ज़माना मेरी तबाही पे जो उदास हुआ
शाहीन बद्र
वफ़ा का शौक़ ये किस इंतिहा में ले आया
शहबाज़ ख़्वाजा
सुब्हा से है न काम न ज़ुन्नार से ग़रज़
शाह आसिम
गुल-ए-ख़ुश-नुमा के लिबास में कि शुआ-ए-नूर में ढल के आ
शायर फतहपुरी
आदतन मायूस अब तो शाम है
शादाब उल्फ़त
जी जाऊँ जो बंद नातिक़ा हो
शाद लखनवी
दुनिया में क़स्र-ओ-ऐवाँ बे-फ़ाएदा बनाया
शाद लखनवी
शब-ए-विसाल थी रौशन फ़ज़ा में बैठा था
शबाब ललित
जो ग़म-ए-हबीब से दूर थे वो ख़ुद अपनी आग में जल गए
शायर लखनवी
ज़ब्त-ए-नावक-ए-ग़म से बात बन तो सकती है
शाद आरफ़ी
ख़ाली ख़ाली रस्तों पे बे-कराँ उदासी है
सरवत ज़ेहरा
कुछ मह-जबीं लिबास के फैशन की दौड़ में
सरफ़राज़ शाहिद
कुछ लोग रब्त-ए-ख़ास से आगे निकल गए
सरफ़राज़ शाहिद
मौत की तलाशी मत लो
सारा शगुफ़्ता
कैसे टहलता है चाँद
सारा शगुफ़्ता
आँखें दो जुडवाँ बहनें
सारा शगुफ़्ता
इबरत-ए-दहर हो गया जब से छुपा मज़ार में
साक़िब लखनवी
वो आरज़ू कि दिलों को उदास छोड़ गई
समद अंसारी
हम रूह-ए-काएनात हैं नक़्श-ए-असास हैं
समद अंसारी
ऐ जान-ए-जाँ तिरे मिज़ाज का फ़लक भी ख़ूब है
सलमा शाहीन
ख़ुशबू का लिबास
सलीमुर्रहमान
हूँ पारसा तिरे पहलू में शब गुज़ार के भी
सलीम सिद्दीक़ी
हूँ पारसा तिरे पहलू में शब गुज़ार के भी
सलीम सिद्दीक़ी
बदन क़ुबूल है उर्यानियत का मारा हुआ
सलीम सिद्दीक़ी
मौसम का ज़हर दाग़ बने क्यूँ लिबास पर
सलीम शाहिद
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