वस्त्र Poetry (page 5)

मत पूछ हर्फ़-ए-दर्द की तफ़्सीर कुछ भी हो

सलीम शाहिद

न पूछो अक़्ल की चर्बी चढ़ी है उस की बोटी पर

सलीम अहमद

जंगली नाच

सलाम मछली शहरी

रात कई दिनों से ग़ाएब थी

सलाहुद्दीन परवेज़

कार्तिक

सलाहुद्दीन परवेज़

इक हवा उट्ठेगी सारे बाल-ओ-पर ले जाएगी

सज्जाद बाबर

मुफ़ाहमत

साहिर लुधियानवी

बहुत घुटन है

साहिर लुधियानवी

बहुत घुटन है कोई सूरत-ए-बयाँ निकले

साहिर लुधियानवी

शफ़्फ़ाफ़ रंग

साहिल अहमद

काम आई इश्क़ की दीवानगी कल रात को

सग़ीर अहमद सूफ़ी

इक अजनबी ख़याल में ख़ुद से जुदा रहा

साग़र मेहदी

दिल्ली की लड़कियाँ

साग़र ख़य्यामी

उर्दू-ए-मुअ'ल्ला

सफ़ी लखनवी

सहरा में ज़र्रा क़तरा समुंदर में जा मिला

सईदुल ज़फर चुग़ताई

लोहे का लिबास

सईदुद्दीन

गुज़र न जाए समाअ'त के सर्द-ख़ानों से

सईद शरीक़

किया है ख़ुद ही गिराँ ज़ीस्त का सफ़र मैं ने

सईद नक़वी

क्यूँ सदा पहने वो तेरा ही पसंदीदा लिबास

सदा अम्बालवी

वो तो ख़ुश्बू है हर इक सम्त बिखरना है उसे

सदा अम्बालवी

आँधी का कर ख़याल न तेवर हवा के देख

साबिर ज़ाहिद

मिसाल-ए-संग पड़ा कब तक इंतिज़ार करूँ

साबिर ज़फ़र

लहू में नाचती हमेश्गी उदास हो के रह गई

साबिर ज़फ़र

क्या पता क्या था उधर और क्या न था

साबिर अदीब

इसी लिबास इसी पैरहन में रहना है

रिज़वानूरर्ज़ा रिज़वान

वो मुंतज़िर हैं हमारे तो हम किसी के हैं

रेहाना रूही

लुत्फ़ ख़ुदी यही है कि शान-ए-बक़ा रहूँ

रतन पंडोरवी

हाथ से छू कर ये नीला आसमाँ भी देखते

राशिद मुफ़्ती

जुज़ और क्या किसी से है झगड़ा फ़क़ीर का

राशिद अमीन

दर्द अपना था तो इस दर्द को ख़ुद सहना था

राशिद आज़र

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