क्यूँ सदा पहने वो तेरा ही पसंदीदा लिबास
कुछ तो मौसम के मुताबिक़ भी सँवरना है उसे
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लोग कहते हैं दिल लगाना जिसे
मोहब्बत के मरीज़ों का मुदावा है ज़रा मुश्किल
चलो कि हम भी ज़माने के साथ चलते हैं
न ज़िक्र गुल का कहीं है न माहताब का है
दिल को समझा लें अभी से तो मुनासिब होगा
बड़ा घाटे का सौदा है 'सदा' ये साँस लेना भी
मंज़र-ए-रुख़्सत-ए-दिलदार भुलाया न गया
दिखाएगी असर दिल की पुकार आहिस्ता आहिस्ता
वो तो ख़ुश्बू है हर इक सम्त बिखरना है उसे
तबीअत रफ़्ता रफ़्ता ख़ूगर-ए-ग़म होती जाती है
तुम सितारों के भरोसे पे न बैठे रहना