कौन आएगा भूल कर रस्ता
दिल को क्यूँ ज़िद है घर सजाने की
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Habib Jalib
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Anwar Masood
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Rahat Indori
Ahmad Faraz
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न ज़िक्र गुल का कहीं है न माहताब का है
क्यूँ ये हसरत थी दिल लगाने की
दे गया ख़ूब सज़ा मुझ को कोई कर के मुआफ़
अब कहाँ दोस्त मिलें साथ निभाने वाले
शेर में साथ रवानी के मआनी भी तो भर
यूँ तो इक उम्र साथ साथ हुई
रस्म-ए-दुनिया तो किसी तौर निभाते जाओ
तबीअत रफ़्ता रफ़्ता ख़ूगर-ए-ग़म होती जाती है
वो तो ख़ुश्बू है हर इक सम्त बिखरना है उसे
लोग कहते हैं दिल लगाना जिसे
दिल को समझा लें अभी से तो मुनासिब होगा
चलो कि हम भी ज़माने के साथ चलते हैं