न ज़िक्र गुल का कहीं है न माहताब का है
तमाम शहर में चर्चा तिरे शबाब का है
Gulzar
Habib Jalib
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(473) Peoples Rate This
दिखाएगी असर दिल की पुकार आहिस्ता आहिस्ता
लोग कहते हैं दिल लगाना जिसे
दे गया ख़ूब सज़ा मुझ को कोई कर के मुआफ़
इक न इक रोज़ रिफ़ाक़त में बदल जाएगी
दिल जलाओ या दिए आँखों के दरवाज़े पर
क्यूँ ये हसरत थी दिल लगाने की
वक़्त के साथ 'सदा' बदले तअल्लुक़ कितने
ज़ुल्फ़ लहरा के फ़ज़ा पहले मोअत्तर कर दे
तबीअत रफ़्ता रफ़्ता ख़ूगर-ए-ग़म होती जाती है
उन्हें न तोलिये तहज़ीब के तराज़ू में
कौन आएगा भूल कर रस्ता