उन्हें न तोलिये तहज़ीब के तराज़ू में
घरों में उन के न चूल्हे न दीप जलते हैं
Rahat Indori
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वक़्त हर ज़ख़्म का मरहम तो नहीं बन सकता
दिखाएगी असर दिल की पुकार आहिस्ता आहिस्ता
लाख तक़दीर पे रोए कोई रोने वाला
चलो कि हम भी ज़माने के साथ चलते हैं
न ज़िक्र गुल का कहीं है न माहताब का है
नींद आई ही नहीं हम को न पूछो कब से
वक़्त के साथ 'सदा' बदले तअल्लुक़ कितने
दिल न माना मना के देख लिया
'सदा' के पास है दुनिया का तजरबा वाइज़
बड़ा घाटे का सौदा है 'सदा' ये साँस लेना भी
शेर में साथ रवानी के मआनी भी तो भर
दिल जलाओ या दिए आँखों के दरवाज़े पर