वक़्त हर ज़ख़्म का मरहम तो नहीं बन सकता
दर्द कुछ होते हैं ता-उम्र रुलाने वाले
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वो तो ख़ुश्बू है हर इक सम्त बिखरना है उसे
ज़ुल्फ़ लहरा के फ़ज़ा पहले मोअत्तर कर दे
दिल को समझा लें अभी से तो मुनासिब होगा
लोग कहते हैं दिल लगाना जिसे
चलो कि हम भी ज़माने के साथ चलते हैं
दिल के कहने पर चल निकला
मोहब्बत के मरीज़ों का मुदावा है ज़रा मुश्किल
मंज़र-ए-रुख़्सत-ए-दिलदार भुलाया न गया
रस्म-ए-दुनिया तो किसी तौर निभाते जाओ
लाख तक़दीर पे रोए कोई रोने वाला
यूँ तो इक उम्र साथ साथ हुई