मंजिलें Poetry (page 2)

दश्त में है एक नक़्श-ए-रहगुज़र सब से अलग

सरमद सहबाई

सफ़र

सलीम अहमद

मैं सर छुपाऊँ कहाँ साया-ए-नज़र के बग़ैर

सलीम अहमद

मिरे सफ़र की हदें ख़त्म अब कहाँ होंगी

सज्जाद बाक़र रिज़वी

नूर-ए-ईमाँ सुर्मा-ए-चश्म-ए-दिल-ओ-जाँ कीजिए

साहिर देहल्वी

वो एक चेहरा जो उस से गुरेज़ कर जाता

सादिक़

दरीचा बे-सदा कोई नहीं है

साबिर ज़फ़र

सर-ए-राह इक हादिसा हो गया

ऋषि पटियालवी

कितनी सदियों से लम्हों का लोबान जलता रहा

रउफ़ ख़लिश

ज़ाद-ए-सफ़र

राशिद आज़र

न मंज़िलें थीं न कुछ दिल में था न सर में था

राजेन्द्र मनचंदा बानी

इक मुसलसल दौड़ में हैं मंज़िलें और फ़ासले

इफ़्तिख़ार इमाम सिद्दीक़ी

वो नहीं मिलता मुझे इस का गिला अपनी जगह

इफ़्तिख़ार इमाम सिद्दीक़ी

वो ख़्वाब था बिखर गया ख़याल था मिला नहीं

इफ़्तिख़ार इमाम सिद्दीक़ी

मोहब्बत की एक नज़्म

इफ़्तिख़ार आरिफ़

हाँ ऐ गुबार-ए-आश्ना मैं भी था हम-सफ़र तिरा

इदरीस बाबर

देख न इस तरह गुज़ार अर्सा-ए-चश्म से मुझे

इदरीस बाबर

न कू-ए-यार में ठहरा न अंजुमन में रहा

इब्राहीम अश्क

हवा की तेज़-गामियों का इंकिशाफ़ क्या करें

हुमैरा रहमान

सुकून-ए-दिल के लिए और क़रार-ए-जाँ के लिए

हीरा लाल फ़लक देहलवी

कैसे कहें कि याद-ए-यार रात जा चुकी बहुत

हबीब जालिब

शजर-ए-उम्मीद भी जल गया वो वफ़ा की शाख़ भी जल गई

गुलनार आफ़रीन

शाम-ए-अयादत

फ़िराक़ गोरखपुरी

ज़ेर-ओ-बम से साज़-ए-ख़िलक़त के जहाँ बनता गया

फ़िराक़ गोरखपुरी

लुत्फ़-सामाँ इताब-ए-यार भी है

फ़िराक़ गोरखपुरी

आई है कुछ न पूछ क़यामत कहाँ कहाँ

फ़िराक़ गोरखपुरी

ख़याल आतिशीं ख़्वाबीदा सूरतें दी हैं

फ़रहत अब्बास

रह जाए या बला से ये जान रह न जाए

फ़ानी बदायुनी

राह-ए-तलब में अहल-ए-दिल जब हद-ए-आम से बढ़े

एजाज़ वारसी

कल रात कुछ अजीब समाँ ग़म-कदे में था

एहसान दानिश

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