मंजिलें Poetry (page 3)

उदासी के मंज़र मकानों में हैं

देवमणि पांडेय

क़ैद-ए-ग़म-ए-हयात से अहल-ए-जहाँ मफ़र नहीं

दर्शन सिंह

फ़ज़ा-ए-आदमियत को सँवरने ही नहीं देते

चरण सिंह बशर

सवाब है या किसी जनम का हिसाब कोई चुका रहा हूँ

भारत भूषण पन्त

मुजस्समा

अज़ीज़ तमन्नाई

ये ग़लत है ऐ दिल-ए-बद-गुमाँ कि वहाँ किसी का गुज़र नहीं

अज़ीज़ लखनवी

इबारतें चमक रही हैं दिल में तेरे प्यार की

आयुष चराग़

मैं अपनी ख़ाक को जब आइना बनाता हूँ

अतीक़ अहमद

सराब-ए-मअनी-ओ-मफ़्हूम में भटकते हैं

असलम महमूद

सुबुक सा दर्द था उठता रहा जो ज़ख़्मों से

असलम हबीब

सोचते हैं कि बुलबुला हो जाएँ

अशहद बिलाल इब्न-ए-चमन

तमन्नाएँ जवाँ थीं इश्क़ फ़रमाने से पहले

अक़ील नोमानी

तय न कर पाई मंज़िलें तितली

अक़ील जामिद

दुश्मन तो मेरे तन से लहू चूसता रहा

अनवर सदीद

कोई सदा न दूर तलक नक़्श-ए-पा कोई

अनवर अंजुम

नए दिनों के नए सहीफ़ों में ज़िक्र-ए-मेहर-ओ-वफ़ा नहीं है

अनवर अलीमी

कीजिए हुनर का ज़िक्र क्या आबरू-ए-हुनर नहीं

अनीस देहलवी

निगाह-ओ-दिल का अफ़्साना क़रीब-ए-इख़्तिताम आया

आनंद नारायण मुल्ला

ज़िंदगानी जावेदानी भी नहीं

अमजद इस्लाम अमजद

हज़ारों मंज़िलें फिर भी मिरी मंज़िल है तू ही तू

अमीता परसुराम 'मीता'

जब से ज़िंदगी हुआ दिल गर्दिश-ए-तक़दीर का

अंबरीन हसीब अंबर

हमें ख़बर है कोई हम-सफ़र न था फिर भी

अख़्तर होशियारपुरी

ज़मीन पर ही रहे आसमाँ के होते हुए

अख़्तर होशियारपुरी

शाख़ों पे ज़ख़्म हैं कि शगूफ़े खिले हुए

अख़्तर होशियारपुरी

इक ख़्वाब है ये प्यास भी दरिया भी ख़्वाब है

अहमद सग़ीर सिद्दीक़ी

महफ़िल-ए-शब

अहमद नदीम क़ासमी

कभी तुम ने कुछ तो दिया नहीं कभी हम ने कुछ तो लिया नहीं

अहमद हमेश

हम अगर मंज़िलें न बन पाए

अहमद फ़राज़

इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँ

अहमद फ़राज़

ऐसे चुप हैं कि ये मंज़िल भी कड़ी हो जैसे

अहमद फ़राज़

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