हमें ख़बर है कोई हम-सफ़र न था फिर भी
यक़ीं की मंज़िलें तय कीं गुमाँ के होते हुए
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दिल में इक जज़्बा-ए-बेदाद-ओ-जफ़ा ही होगा
ज़माना अपनी उर्यानी पे ख़ूँ रोएगा कब तक
शाम तन्हाई धुआँ उठता बराबर देखते
आग चूल्हे की बुझी जाती है
हरीफ़-ए-दास्ताँ करना पड़ा है
तूफ़ाँ से क़र्या क़र्या एक हुए
न जब कोई शरीक-ए-ज़ात होगा
था एक साया सा पीछे पीछे जो मुड़ के देखा तो कुछ नहीं था
धूप की गरमी से ईंटें पक गईं फल पक गए
इक नूर था कि पिछले पहर हम-सफ़र हुआ
तूफ़ान-ए-अब्र-ओ-बाद से हर-सू नमी भी है
थी तितलियों के तआ'क़ुब में ज़िंदगी मेरी