मौसम Poetry (page 4)

आया जो मौसम-ए-गुल तो ये हिसाब होगा

वज़ीर अली सबा लखनवी

आप अपनी बेवफ़ाई देखिए

वज़ीर अली सबा लखनवी

धार सी ताज़ा लहू की शबनम-अफ़्शानी में है

वज़ीर आग़ा

हर एक मौसम में रौशनी सी बिखेरते हैं

वसी शाह

उदास रातों में तेज़ कॉफ़ी की तल्ख़ियों में

वसी शाह

खुल के मिलने का सलीक़ा आप को आता नहीं

वसीम बरेलवी

लगता है इन दिनों के है महशर-ब-कफ़ हवा

वक़ार हिल्म सय्यद नगलवी

इक-बटा-दो को करूँ क्यूँ न रक़म दो-बटा-चार

वक़ार हिल्म सय्यद नगलवी

कल तलक जो था तसव्वुर अंजुमन-आराइयों का

वलीउल्लाह वली

ख़ुदा ही पहुँचे फ़रियादों को हम से बे-नसीबों के

वली उज़लत

मिल भी जाते हैं तो कतरा के निकल जाते हैं

वाली आसी

कभी लुत्फ़-ए-ज़बान-ए-ख़ुश-बयाँ थे

वाजिद अली शाह अख़्तर

रुख़्सत-ए-नुत्क़ ज़बानों को रिया क्या देगी

वहीद अख़्तर

ख़ाके

वहीद अहमद

सुकूत-ए-शब सितारों से हवा जब बात करती है

विश्मा ख़ान विश्मा

आग दरिया को इशारों से लगाने वाला

विशाल खुल्लर

उम्र-भर उस की निशानी देखिए

विनीत आश्ना

ज़र्रों की बातों में आने वाला था

विकास शर्मा राज़

मंज़िलों से भी आगे निकलता हुआ

विकास शर्मा राज़

उस गली तक सड़क रही होगी

विजय शर्मा अर्श

मलाल

वली मदनी

आती जाती लहरें

वली मदनी

वो ध्यान की राहों में जहाँ हम को मिलेगा

उर्फ़ी आफ़ाक़ी

ज़ेहन-ओ-दिल में कुछ न कुछ रिश्ता भी था

उम्मीद फ़ाज़ली

वो ख़्वाब ही सही पेश-ए-नज़र तो अब भी है

उम्मीद फ़ाज़ली

तुम हो जो कुछ कहाँ छुपाओगे

उम्मीद फ़ाज़ली

तुम हो जो कुछ कहाँ छुपाओगे

उम्मीद फ़ाज़ली

कब तक इस प्यास के सहरा में झुलसते जाएँ

उम्मीद फ़ाज़ली

बाहर बाहर सन्नाटा है अंदर अंदर शोर बहुत

उमर अंसारी

जब इंसान को अपना कुछ इदराक हुआ

उमैर मंज़र

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