मौत Poetry (page 16)

परछाइयाँ

फ़िराक़ गोरखपुरी

जुगनू

फ़िराक़ गोरखपुरी

जुदाई

फ़िराक़ गोरखपुरी

आधी रात

फ़िराक़ गोरखपुरी

ये नर्म नर्म हवा झिलमिला रहे हैं चराग़

फ़िराक़ गोरखपुरी

ये मौत-ओ-अदम कौन-ओ-मकाँ और ही कुछ है

फ़िराक़ गोरखपुरी

रस्म-ओ-राह-ए-दहर क्या जोश-ए-मोहब्बत भी तो हो

फ़िराक़ गोरखपुरी

नर्म फ़ज़ा की करवटें दिल को दुखा के रह गईं

फ़िराक़ गोरखपुरी

जिसे लोग कहते हैं तीरगी वही शब हिजाब-ए-सहर भी है

फ़िराक़ गोरखपुरी

'फ़िराक़' इक नई सूरत निकल तो सकती है

फ़िराक़ गोरखपुरी

बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं

फ़िराक़ गोरखपुरी

आँखों में जो बात हो गई है

फ़िराक़ गोरखपुरी

आई है कुछ न पूछ क़यामत कहाँ कहाँ

फ़िराक़ गोरखपुरी

चमन अपने रंग में मस्त है कोई ग़म-गुसार-ए-दिगर नहीं

फ़िगार उन्नावी

आरज़ू हसरत-ए-नाकाम से आगे न बढ़ी

फ़िगार उन्नावी

कली कली का बदन फोड़ कर जो निकला है

फ़ज़्ल ताबिश

हुई दिल टूटने पर इस तरह दिल से फ़ुग़ाँ पैदा

फ़ाज़िल अंसारी

न तुम आए न चैन आया न मौत आई शब-ए-व'अदा

फ़य्याज़ हाशमी

न तुम मेरे न दिल मेरा न जान-ए-ना-तवाँ मेरी

फ़य्याज़ हाशमी

उस की हर बात ने जादू सा किया था पहले

फ़े सीन एजाज़

नहीं ख़याल तो फिर इंतिज़ार किस का है

फ़ातिमा वसीया जायसी

मौत

फ़ारूक़ नाज़की

मातम-ए-नीम-ए-शब

फ़ारूक़ नाज़की

ख़ुशी से फूलें न अहल-ए-सहरा अभी कहाँ से बहार आई

फ़ारूक़ बाँसपारी

सौत क्या शय है ख़ामुशी क्या है

फ़रहत शहज़ाद

नहीं है अब कोई रस्ता नहीं है

फ़रहत शहज़ाद

रातों के अंधेरों में ये लोग अजब निकले

फ़रहत क़ादरी

बिछड़े घर का साया

फ़रहत एहसास

नंग धड़ंग मलंग तरंग में आएगा जो वही काम करेंगे

फ़रहत एहसास

नहीं देखता दिन जिसे चश्म-ए-शब देखती है

फ़रहत एहसास

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