मौत Poetry (page 7)

ज़िंदगी शब के जज़ीरों से उधर ढूँडते हैं

शहबाज़ ख़्वाजा

दवाम

शहाब जाफ़री

याद उस की है कुछ ऐसी कि बिसरती भी नहीं

शहाब जाफ़री

क्यूँ मुश्त-ए-ख़ाक पर कोई दिल दाग़दार हो

शाह दीन हुमायूँ

ऐसी नींद आई कि फिर मौत को प्यार आ ही गया

शफ़ीक़ जौनपुरी

क्या कहूँ ग़ुंचा-ए-गुल नीम-दहाँ है कुछ और

शाद लखनवी

कहते हैं नाला-ए-हज़ीं सुन के

शाद लखनवी

ख़्वाह मुफ़्लिसी से निकल गया या तवंगरी से निकल गया

शाद बिलगवी

जफ़ा-शिआ'र भी हो कोई मेहरबाँ भी रहे

शाद बिलगवी

ये रात भयानक हिज्र की है काटेंगे बड़े आलाम से हम

शाद अज़ीमाबादी

सियाहकार सियह-रू ख़ता-शिआर आया

शाद अज़ीमाबादी

न जाँ-बाज़ों का मजमा था न मुश्ताक़ों का मेला था

शाद अज़ीमाबादी

अब इंतिहा का तिरे ज़िक्र में असर आया

शाद अज़ीमाबादी

अब भी इक उम्र पे जीने का न अंदाज़ आया

शाद अज़ीमाबादी

सामने इक बे-रहम हक़ीक़त नंगी हो कर नाचती है

शबनम शकील

नज़्म

शबनम अशाई

नज़्म

शबनम अशाई

नज़्म

शबनम अशाई

किस तरफ़ से आ रही हैं दर्द की पुरवाइयाँ

सीमाब सुल्तानपुरी

अल्लाह दे सके तो दे ऐसी ज़बाँ मुझे

सीमाब सुल्तानपुरी

गौतम-बुद्ध

सीमाब अकबराबादी

तक़दीर में इज़ाफ़ा-ए-सोज़-ए-वफ़ा हुआ

सीमाब अकबराबादी

सुनी न दश्त या दरिया की भी कभी मैं ने

सीमा शर्मा मेरठी

नक़्श आँखों में उतारा जाएगा

सीमा शर्मा मेरठी

बताओ मौत क्या है ज़िंदगी क्या

सीमा शर्मा मेरठी

आरज़ूओं के शगूफ़ों को जला कर देखो

सत्य नन्द जावा

अजाइब-ख़ाना

सरवत ज़ेहरा

बयान क़िस्सा-ए-बेचारगी किया जाए

सरवर आलम राज़

दरख़्त मेरे दोस्त

सरवत हुसैन

आँख ही आँख थी मंज़र भी नहीं था कोई

सरफ़राज़ ख़ालिद

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