स्थान Poetry (page 6)

वो बर्क़-ए-नाज़ गुरेज़ाँ नहीं तो कुछ भी नहीं

रविश सिद्दीक़ी

ख़िरद को गुमशुदा-ए-कू-ब-कू समझते हैं

रविश सिद्दीक़ी

ये कौन सा मक़ाम है ऐ जोश-ए-बे-ख़ुदी

रतन पंडोरवी

लुत्फ़ ख़ुदी यही है कि शान-ए-बक़ा रहूँ

रतन पंडोरवी

ज़माना गुज़रा है लहरों से जंग करते हुए

राशिद अनवर राशिद

मिरी शनाख़्त के हर नक़्श को मिटाता है

रशीदुज़्ज़फ़र

अपनी तरह मुझे भी ज़माने में आम कर

रशीद क़ैसरानी

किसे है लौह-ए-वक़्त पर दवाम सोचते रहे

रशीद कामिल

साए से हौसले के बिदकते हैं रास्ते

राम प्रकाश राही

जो भी देना है वो ख़ुदा देगा

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर

किसी मक़ाम से कोई ख़बर न आने की

राजेन्द्र मनचंदा बानी

अजीब तजरबा था भीड़ से गुज़रने का

राजेन्द्र मनचंदा बानी

तुम्हारी याद

राजेन्द्र नाथ रहबर

मरीज़-ए-हिज्र को सेहत से अब तो काम नहीं

रजब अली बेग सुरूर

दुआ ने काम किया है यक़ीं नहीं आता

राज कुमार क़ैस

नतशे ने कहा

रईस फ़रोग़

फूल ज़मीन पर गिरा फिर मुझे नींद आ गई

रईस फ़रोग़

आगही जिस मक़ाम पर ठहरी

रहमान जामी

यास-ओ-हिरास-ओ-जौर-ओ-जफ़ा से अलग-थलग

राही फ़िदाई

चश्म-ए-ख़ाना मक़ाम-ए-दर्द का है

इक़बाल ख़ुसरो क़ादरी

सद-बर्ग गह दिखाई है गह अर्ग़वाँ बसंत

इंशा अल्लाह ख़ान

जिला

इंजिला हमेश

दीवानगी में अपना पता पूछता हूँ मैं

इमरान हुसैन आज़ाद

कोई मेरा इमाम था ही नहीं

इमरान आमी

रौशन हज़ार चंद हैं शम्स-ओ-क़मर से आप

इमदाद अली बहर

ख़ुर्शीद फ़िराक़ में तपाँ है

इमदाद अली बहर

जाते है ख़ानक़ाह से वाइज़ सलाम है

इमदाद अली बहर

इस बस्ती के इक कूचे में

इब्न-ए-इंशा

दिल-आशोब

इब्न-ए-इंशा

यगानगी में भी दुख ग़ैरियत के सहता हूँ

हुरमतुल इकराम

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