स्थान Poetry (page 8)

तेरे वादे का इख़्तिताम नहीं

ग़ुलाम मौला क़लक़

तेरे दर पर मक़ाम रखते हैं

ग़ुलाम मौला क़लक़

राज़-ए-दिल दोस्त को सुना बैठे

ग़ुलाम मौला क़लक़

नक़्श-बर-आब नाम है सैल-ए-फ़ना मक़ाम

ग़ुलाम मौला क़लक़

किसी के नर्म तख़ातुब पे यूँ लगा मुझ को

ग़ज़नफ़र

दोनों जहाँ दे के वो समझे ये ख़ुश रहा

ग़ालिब

ये फ़र्क़ जीते ही जी तक गदा-ओ-शाह में है

जोर्ज पेश शोर

मैं ख़ुद ही ख़ूगर-ए-ख़लिश-ए-जुस्तुजू न था

गौहर होशियारपुरी

इक साया-ए-शाम याद आया

गौहर होशियारपुरी

आज़ादी

फ़िराक़ गोरखपुरी

सर में सौदा भी नहीं दिल में तमन्ना भी नहीं

फ़िराक़ गोरखपुरी

तूफ़ाँ से बच के दामन-ए-साहिल में रह गया

फ़िगार उन्नावी

कुछ काम तो आया दिल-ए-नाकाम हमारा

फ़िगार उन्नावी

ऐ कहकशाँ गुज़र के तिरी रहगुज़र से हम

फ़ाज़िल अंसारी

रूह और बदन दोनों दाग़ दाग़ हैं यारो

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

उजले माथे पे नाम लिख रक्खें

फ़ारूक़ मुज़्तर

न पानियों का इज़्तिरार शहर में

फ़ारूक़ मुज़्तर

अब उस मक़ाम पे है मौसमों का सर्द मिज़ाज

फ़रहान सालिम

ये क्या हुआ कि सभी अब तो दाग़ जलने लगे

फ़रहान सालिम

दिल से अगर कभी तिरा अरमान जाएगा

फ़ना निज़ामी कानपुरी

तुम हो शरीक-ए-ग़म तो मुझे कोई ग़म नहीं

फ़ना बुलंदशहरी

मिरे दाग़-ए-दिल वो चराग़ हैं नहीं निस्बतें जिन्हें शाम से

फ़ना बुलंदशहरी

जब तक मिज़ाज-ए-दोस्त में कुछ बरहमी रही

फ़ैज़ुल हसन

लगा कि जैसे किसी काँपते हिरन को छुआ

फ़ैज़ ख़लीलाबादी

टूटी जहाँ जहाँ पे कमंद

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

शहर-ए-याराँ

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

हम मुसाफ़िर यूँही मसरूफ़-ए-सफ़र जाएँगे

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

गिरानी-ए-शब-ए-हिज्राँ दो-चंद क्या करते

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

जहाँ में ख़ुद को बनाने में देर लगती है

फ़ैय्याज़ रश्क़

इस गली के मोड़ पर

फ़हमीदा रियाज़

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