स्थान Poetry (page 3)

आई सहर क़रीब तो मैं ने पढ़ी ग़ज़ल

सय्यद आबिद अली आबिद

मिलते गए हैं मोड़ नए हर मक़ाम पर

सूफ़ी तबस्सुम

वो मुझ से हुए हम-कलाम अल्लाह अल्लाह

सूफ़ी तबस्सुम

ख़ामोशी कलाम हो गई है

सूफ़ी तबस्सुम

हज़ार गर्दिश-ए-शाम-ओ-सहर से गुज़रे हैं

सूफ़ी तबस्सुम

मुझे अब हवा-ए-चमन नहीं कि क़फ़स में गूना क़रार है

सिराज लखनवी

नयन की पुतली में ऐ सिरीजन तिरा मुबारक मक़ाम दिस्ता

सिराज औरंगाबादी

हमारी आँखों की पुतलियों में तिरा मुबारक मक़ाम हैगा

सिराज औरंगाबादी

अजनबी राह-गुज़र

सिद्दीक़ कलीम

हूँ किस मक़ाम पे दिल में तिरे ख़बर न लगे

सिद्दीक़ शाहिद

ख़ुदा ने चाहा तो सब इंतिज़ाम कर देंगे

शुजा ख़ावर

वो और होंगे जो वहम-ओ-गुमाँ के साथ चले

शोला हस्पानवी

मैं जब्हा सा हूँ उस दर-ए-आली-मक़ाम का

शोला अलीगढ़ी

तमाम ख़ुशियाँ तमाम सपने हम एक दूजे के नाम कर के

शमशाद शाद

क्या ख़बर थी आतिशीं आब-ओ-हवा हो जाऊँगा

शीन काफ़ निज़ाम

याद

शौकत परदेसी

ये रात कितनी भयानक है बाम-ओ-दर के लिए

शातिर हकीमी

पलट के दौर-ए-ज़माँ सुब्ह-ओ-शाम पैदा कर

शातिर हकीमी

ग़ज़ल वही है जो हो शाख़-ए-गुल-निशाँ की तरह

शारिक़ ईरायानी

ज़रा भी जिस की वफ़ा का यक़ीन आया है

शमीम जयपुरी

तिरे अहल-ए-दर्द के रोज़-ओ-शब इसी कश्मकश में गुज़र गए

शमीम जयपुरी

वही कारवाँ वही रास्ते वही ज़िंदगी वही मरहले

शकील बदायुनी

मिरी ज़िंदगी पे न मुस्कुरा मुझे ज़िंदगी का अलम नहीं

शकील बदायुनी

इक इक क़दम फ़रेब-ए-तमन्ना से बच के चल

शकील बदायुनी

आया है हर चढ़ाई के बा'द इक उतार भी

शकेब जलाली

बस वही लम्हा आँख देखेगी

शाइस्ता यूसुफ़

औक़ात-ए-शैख़ गो कि सुजूद ओ क़याम है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

अपने ज़ौक़-ए-दीद को अब कारगर पाता हूँ मैं

शैदा अम्बालवी

बाग़-ए-बहिश्त के मकीं कहते हैं मर्हबा मुझे

शहज़ाद अहमद

ज़िंदा रहने का ये एहसास

शहरयार

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