मिलते गए हैं मोड़ नए हर मक़ाम पर
बढ़ती गई है दूरियाँ मंज़िल जगह जगह
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
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Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Gulzar
Anwar Masood
Parveen Shakir
Habib Jalib
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किसी में ताब-ए-अलम नहीं है किसी में सोज़-ए-वफ़ा नहीं है
बुझी बुझी सी सितारों की रौशनी है अभी
हर ख़िज़ाँ ग़ारत-गर-ए-चमन ही सही
या क़ल्ब को दर्द में डुबोना सीखो
काविश-ए-बेश-ओ-कम की बात न कर
जो सफ़र भी था ज़िंदगानी का
देखो शब-ए-हिज्र की दराज़ी देखो
इस निय्यत से तंग आ के रोए हम लोग
अफ़्साना-ए-ग़म है शादमानी मेरी
ऐ दोस्त न पूछ मुझ से क्या है
आँसुओं में अलम का रंग न था