इस निय्यत से तंग आ के रोए हम लोग
इस नीस्त का राज़ पा के रोए हम लोग
हँसना था किसी के सामने क्या हँसते
रोए तो नज़र बचा के रोए हम लोग
Javed Akhtar
Anwar Masood
Habib Jalib
Gulzar
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
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वो थे पहलू में और थी चाँदनी रात
इस आलम-ए-वीराँ में क्या अंजुमन-आराई
चूहा
हर ख़िज़ाँ ग़ारत-गर-ए-चमन ही सही
ख़ामोशी कलाम हो गई है
इंसाँ में रूह-ए-आदमिय्यत भी नहीं
खुल के रोने की तमन्ना थी हमें
जब भी दो आँसू निकल कर रह गए
रात दिन
किसी में ताब-ए-अलम नहीं है किसी में सोज़-ए-वफ़ा नहीं है
ऐ दोस्त न पूछ मुझ से क्या है
चंद रोज़ और मिरी जान फ़क़त चंद ही रोज़