ख़ामोशी का राज़ खोलना भी सीखो
आँखों की ज़बाँ से बोलना भी सीखो
लब कैसे कहेंगे दिल की सारी बातें
नज़रों से नज़र टटोलना भी सीखो
Gulzar
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मोहब्बत किस क़दर सेहर-आफ़रीं मालूम होती है
इलाज-ए-दर्द-ए-दिल-ए-सोगवार हो न सका
कितनी फ़रियादें लबों पर रुक गईं
रात दिन
आँखें खुली थीं सब की कोई देखता न था
ख़ामोशी कलाम हो गई है
जान दे कर वफ़ा में नाम किया
मेरा ख़ुदा
बरसात की छा गईं घटाएँ साक़ी
अफ़्साना-हा-ए-दर्द सुनाते चले गए
जब भी दो आँसू निकल कर रह गए