खुल के रोने की तमन्ना थी हमें
एक दो आँसू निकल कर रह गए
Anwar Masood
Habib Jalib
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Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Mir Taqi Mir
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तुम आसमाँ की तरफ़ न देखो
आसाँ नहीं हाल-ए-दिल अयाँ हो जाना
आँखें खुली थीं सब की कोई देखता न था
न जाने कट गया किस बे-ख़ुदी के आलम में
जब भी दो आँसू निकल कर रह गए
इस निय्यत से तंग आ के रोए हम लोग
लहू फ़क़ीरों का सोज़-ए-यक़ीं से था जब गर्म
ख़ामोशी का राज़ खोलना भी सीखो
राजा रानी की कहानी
रोज़ दोहराते थे अफ़्साना-ए-दिल
हुस्न मजबूर-ए-जफ़ा है शायद
तू ने कुछ भी न कहा हो जैसे