कौन किस का ग़म खाए कौन किस को बहलाए
तेरी बे-कसी तन्हा मैरी बेबसी तन्हा
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शादाँ हूँ कि ग़मनाक पिए जाता हूँ
है फ़ितरत-ए-ज़न रमीदा आहू की तरह
मोहब्बत किस क़दर सेहर-आफ़रीं मालूम होती है
ख़ामोशी का राज़ खोलना भी सीखो
देखो शब-ए-हिज्र की दराज़ी देखो
इश्क़ की इब्तिदा है सोज़-ए-दरूँ
इंसाँ में रूह-ए-आदमिय्यत भी नहीं
ख़ुद-कुशी
कुछ और गुमरही-ए-दिल का राज़ क्या होगा
नज़र में ढल के उभरते हैं दिल के अफ़्साने
दास्तान-ए-ग़म हम ने कह भी दी तो क्या होगा
चूहा