इश्क़ की इब्तिदा है सोज़-ए-दरूँ
इश्क़ की इंतिहा है ज़ौक़-ए-निगाह
दिल अगर सर्द है तो इश्क़ जुनूँ
और अगर पस्त है नज़र तो गुनाह
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इक फ़क़त याद है जाना उन का
तुम आसमाँ की तरफ़ न देखो
नज़र में ढल के उभरते हैं दिल के अफ़्साने
सीने में उछल रही है हसरत मेरी
जब भी दो आँसू निकल कर रह गए
हर ज़र्रा उभर के कह रहा है
हर दर्द को कर लिया गवारा मैं ने
कुछ और गुमरही-ए-दिल का राज़ क्या होगा
हर ख़िज़ाँ ग़ारत-गर-ए-चमन ही सही
अफ़्साना-ए-ग़म है शादमानी मेरी
ये साज़-ए-तरब ये शादमानी कब तक
ऐ दोस्त न पूछ मुझ से क्या है