इक फ़क़त याद है जाना उन का
और कुछ इस के सिवा याद नहीं
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नज़र में ढल के उभरते हैं दिल के अफ़्साने
तंहाई
सीने में उछल रही है हसरत मेरी
अगरचे आँख बहुत शोख़ियों की ज़द में रही
रात दिन
वो हुस्न को जल्वा-गर करेंगे
ख़ुद-कुशी
चंद रोज़ और मिरी जान फ़क़त चंद ही रोज़
ग़म-नसीबों को किसी ने तो पुकारा होगा
आग़ोश में आ कि कामरानी कर लूँ
इल्म के थे बहुत हिजाब मगर
जब भी दो आँसू निकल कर रह गए