हर दर्द को कर लिया गवारा मैं ने
तूफ़ाँ को समझ लिया किनारा मैं ने
जो अश्क भी मेरी चश्म-ए-तर से टपका
क़िस्मत का बना लिया सितारा मैं ने
Mir Taqi Mir
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आँखें खुली थीं सब की कोई देखता न था
ये शौक़-ए-शराब-ओ-जाम-ओ-मीना कैसा
वो हुस्न को जल्वा-गर करेंगे
शादाँ हूँ कि ग़मनाक पिए जाता हूँ
अफ़्साना-हा-ए-दर्द सुनाते चले गए
सब सब्र-ओ-शकेब-ओ-होश खो देता हूँ
नज़रों से ग़ुबार छट गए हैं
देखो शब-ए-हिज्र की दराज़ी देखो
ख़ामोशी कलाम हो गई है
शजर शजर निगराँ है कली कली बेदार
इस आलम-ए-वीराँ में क्या अंजुमन-आराई
सायों से लिपट रहे थे साए