ये हवाएँ तो मुआफ़िक़ थीं बहुत
क्यूँ हवाओं ने डुबो दी कश्ती
एक तूफ़ाँ के शनावर ने कहा
ना-ख़ुदाओं ने डुबो दी कश्ती
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जवानी के ज़माने याद आए
एक शोला सा उठा था दिल में
हर ज़र्रा उभर के कह रहा है
नज़्म
काविश-ए-बेश-ओ-कम की बात न कर
ये मरहला-हा-ए-शौक़ तौबा तौबा
मैं आ रहा हूँ
आग़ोश में आ कि कामरानी कर लूँ
न जाने कट गया किस बे-ख़ुदी के आलम में
तुझ को आते ही नहीं छुपने के अंदाज़ अभी
हुस्न मजबूर-ए-जफ़ा है शायद
राजा रानी की कहानी