न जाने कट गया किस बे-ख़ुदी के आलम में
वो एक लम्हा गुज़रते जिसे ज़माना लगे
वो ज़ौक़-ओ-शौक़-ए-मोहब्बत की वारदात न पूछ
जो आज ख़ुद भी सुनूँ मैं तो इक फ़साना लगे
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इश्क़ की इब्तिदा है सोज़-ए-दरूँ
राजा रानी की कहानी
हर दर्द को कर लिया गवारा मैं ने
वो हुस्न को जल्वा-गर करेंगे
जाने किस की थी ख़ता याद नहीं
अब वलवले इश्क़ के तमन्ना में नहीं
ये आज आए हैं किस अजनबी से देस में हम
अगरचे आँख बहुत शोख़ियों की ज़द में रही
आँखों में ख़ुमार-ए-शौक़-अफ़ज़ा ले कर
सुरय्या की गुड़िया
दिल की हर आरज़ू है ख़्वाबीदा
ग़म-नसीबों को किसी ने तो पुकारा होगा