अब वलवले इश्क़ के तमन्ना में नहीं
मजनूँ कोई जुस्तुजू-ए-लैला में नहीं
जाने गुज़रे हैं किस तरह से राह-रौ
इक नक़्श-ए-क़दम भी रेग-ए-सहरा में नहीं
Gulzar
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आँसुओं में अलम का रंग न था
सौ बार चमन महका सौ बार बहार आई
नज़रों से ग़ुबार छट गए हैं
काविश-ए-बेश-ओ-कम की बात न कर
जो सफ़र भी था ज़िंदगानी का
ख़ामोशी का राज़ खोलना भी सीखो
कुछ और गुमरही-ए-दिल का राज़ क्या होगा
हर ज़र्रा उभर के कह रहा है
पूछता क्या है हम-नशीं मुझ से
नज़र में ढल के उभरते हैं दिल के अफ़्साने
वफ़ा की आख़िरी मंज़िल भी आ रही है क़रीब
क्या हुआ जो सितारे चमकते नहीं दाग़ दिल के फ़रोज़ाँ करो दोस्तो