आँसुओं में अलम का रंग न था
क़हक़हों में ख़ुशी की बात न थी
थे अजब ढंग ज़िंदगानी के
कोई भी ज़िंदगी की बात न थी
Gulzar
Wasi Shah
Habib Jalib
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
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शजर शजर निगराँ है कली कली बेदार
ये हवाएँ तो मुआफ़िक़ थीं बहुत
हज़ार गर्दिश-ए-शाम-ओ-सहर से गुज़रे हैं
वो मुझ से हुए हम-कलाम अल्लाह अल्लाह
ख़ामोशी कलाम हो गई है
न जाने कट गया किस बे-ख़ुदी के आलम में
दिल को आए कि निगाहों को यक़ीं आ जाए
चूहा
तू ने कुछ भी न कहा हो जैसे
जो सफ़र भी था ज़िंदगानी का
तिरे फ़िराक़ में ज़हराब-ए-ग़म पिए जाऊँ
नज़रों से ग़ुबार छट गए हैं