उठाते हैं मज़े जौर-ओ-सितम के
कुछ ऐसे ख़ूगर-ए-बेदार हैं हम
क़फ़स की तीलियाँ टूटीं तो फिर क्या
असीर-ए-उल्फ़त-ए-सय्याद हैं हम
Faiz Ahmad Faiz
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लहू फ़क़ीरों का सोज़-ए-यक़ीं से था जब गर्म
कितनी हंगामा-ख़ू तमन्नाएँ
सौ बार चमन महका सौ बार बहार आई
देखो शब-ए-हिज्र की दराज़ी देखो
यूँ कौन सी चीज़ है जो दुनिया में नहीं
किस ने ग़म के जाल बिखेरे
ये साज़-ए-तरब ये शादमानी कब तक
मेरा ख़ुदा
ख़ामोशी कलाम हो गई है
अरबाब-ए-वफ़ा की जाँ-गुदाज़ी देखी
नाला-ए-सबा तन्हा फूल की हँसी तन्हा
ख़ुद-कुशी