कितनी हंगामा-ख़ू तमन्नाएँ
मुज़्महिल हो के रह गईं दिल में
जैसे तूफ़ाँ की मुज़्तरिब मौजें
सो गई हों कनार-ए-साहिल में
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Allama Iqbal
Anwar Masood
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
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सुरय्या की गुड़िया
इंसाँ में रूह-ए-आदमिय्यत भी नहीं
आँखें खुली थीं सब की कोई देखता न था
सायों से लिपट रहे थे साए
कितनी फ़रियादें लबों पर रुक गईं
जब भी दो आँसू निकल कर रह गए
अब वलवले इश्क़ के तमन्ना में नहीं
आँखों में ख़ुमार-ए-शौक़-अफ़ज़ा ले कर
बंद हो जाए मिरी आँख अगर
हर ज़र्रा उभर के कह रहा है
रोज़ दोहराते थे अफ़्साना-ए-दिल
तुम आसमाँ की तरफ़ न देखो