देखो शब-ए-हिज्र की दराज़ी देखो
आशोब-ए-अलम की जाँ-गुदाज़ी देखो
देखो तो ज़रा नियाज़-मंदी मेरी
और इस पे तुम अपनी बे-नियाज़ी देखो
Parveen Shakir
Anwar Masood
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Wasi Shah
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
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निगाहें दर पे लगी हैं उदास बैठे हैं
हर एक नक़्श तिरे पाँव का निशाँ सा है
नाला-ए-सबा तन्हा फूल की हँसी तन्हा
नज़र में ढल के उभरते हैं दिल के अफ़्साने
सायों से लिपट रहे थे साए
हज़ार गर्दिश-ए-शाम-ओ-सहर से गुज़रे हैं
वो हुस्न को जल्वा-गर करेंगे
वो थे पहलू में और थी चाँदनी रात
सौ बार चमन महका सौ बार बहार आई
उठाते हैं मज़े जौर-ओ-सितम के
नज़्म
सीने में उछल रही है हसरत मेरी