मिल Poetry (page 4)

ये जो तेरी आँखों में मा'नी-ए-वफ़ा सा है

ज़फ़र अंसारी ज़फ़र

जब भी माज़ी के नज़ारे को नज़र जाएगी

ज़फ़र अंसारी ज़फ़र

यारो हर ग़म ग़म-ए-याराँ है क़रीब आ जाओ

यूसुफ़ ज़फ़र

यारो हर ग़म ग़म-ए-याराँ है क़रीब आ जाओ

यूसुफ़ ज़फ़र

पटरियों की चमकती हुई धार पर फ़ासले अपनी गर्दन कटाते रहे

यूसुफ़ तक़ी

शांति

यूसुफ़ राहत

मज़हब-ए-इंसानियत

यूसुफ़ राहत

उफ़ुक़ तक मेरा सहरा खिल रहा है

यासमीन हमीद

अयाँ हो आप बेगाना बनाया

यासीन अली ख़ाँ मरकज़

वो जो एक चेहरा दमक रहा है जमाल से

यशब तमन्ना

क़िस्सा-ख़्वानी

यामीन

जिस्म और साए

यहया अमजद

उदासी छा गई चेहरे पे शम-ए-महफ़िल के

यगाना चंगेज़ी

देख कर ख़ुश-रंग उस गुल-पैरहन के हाथ पाँव

वज़ीर अली सबा लखनवी

आई ऐ गुल-एज़ार क्या कहना

वज़ीर अली सबा लखनवी

पीपल

वज़ीर आग़ा

कोह-ए-निदा

वज़ीर आग़ा

बयाँ ऐ हम-नशीं ग़म की हिकायत और हो जाती

वासिफ़ देहलवी

दुख दर्द में हमेशा निकाले तुम्हारे ख़त

वसी शाह

बाज़ औक़ात फ़राग़त में इक ऐसा लम्हा आता है

वसीम ताशिफ़

तुझे पाने की कोशिश में कुछ इतना खो चुका हूँ मैं

वसीम बरेलवी

न जाने क्यूँ मुझे उस से ही ख़ौफ़ लगता है

वसीम बरेलवी

मैं आसमाँ पे बहुत देर रह नहीं सकता

वसीम बरेलवी

वो निगाह मिल के निगाह से ब-अदा-ए-ख़ास झिझक गई

वक़ार बिजनोरी

नहीं मिलते तो इक अदना शिकायत है न मिलने की

वामिक़ जौनपुरी

ज़बाँ तक जो न आए वो मोहब्बत और होती है

वामिक़ जौनपुरी

तुझ से मिल कर दिल में रह जाती है अरमानों की बात

वामिक़ जौनपुरी

तरवार खींच हम को दिखाते हो जब न तब

वलीउल्लाह मुहिब

साथ ग़ैरों के है सदा गट-पट

वलीउल्लाह मुहिब

बुलबुल वो गुल है ख़्वाब में तू गा के मत जगा

वलीउल्लाह मुहिब

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