मिल Poetry (page 48)

अपने होने का इक इक पल तजरबा करते रहे

अब्दुल्लाह कमाल

इस ही बुनियाद पर क्यूँ न मिल जाएँ हम

अब्दुल्लाह जावेद

कोई रिश्ता न हो फिर भी रिश्ते बहुत

अब्दुल्लाह जावेद

रक़ीबान-ए-सियह-रू शहर-ए-देहली के मुसाहिब हैं

अब्दुल वहाब यकरू

इश्क़ के फ़न नीं हूँ मैं अवधूत

अब्दुल वहाब यकरू

ये सानेहा भी हो गया है रस्ते में

अब्दुल वहाब सुख़न

आग सीनों में जला कर रखिए

अब्दुल सलाम

गर है दुनिया की तलब ज़ाहिद-ए-मक्कार से मिल

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

आँख पर ए'तिबार हो जाए

अब्दुल मन्नान तरज़ी

मुन्कशिफ़ तल्ख़ी-ए-हालात न होने पाई

अब्दुल मलिक सोज़

दिल अपना याद-ए-यार से बेगाना तो नहीं

अब्दुल मलिक सोज़

क्या बात है ऐ जान-ए-सुख़न बात किए जा

अब्दुल हमीद अदम

दरोग़ के इम्तिहाँ-कदे में सदा यही कारोबार होगा

अब्दुल हमीद अदम

इस तिलिस्म-ए-रोज़-ओ-शब से तो कभी निकलो ज़रा

अब्दुल हफ़ीज़ नईमी

अज़दवाजी ज़िंदगी भी और तिजारत भी अदब भी

अब्दुल अहद साज़

शे'र लिखने का फ़ाएदा क्या है

अब्बास ताबिश

पस-ए-ग़ुबार मदद माँगते हैं पानी से

अब्बास ताबिश

हम ने मिल-जुल के गुज़ारे थे जो दिन अच्छे थे

आज़िम कोहली

'आज़िम' तेरी बर्बादी में सब ने मिल-जुल कर काम किया

आज़िम कोहली

इक इश्क़ है कि जिस की गली जा रहा हूँ मैं

आज़िम कोहली

एहसास के सूखे पत्ते भी अरमानों की चिंगारी भी

आज़िम कोहली

तुम्हें ज़ेबा नहीं हरगिज़ सिले की आरज़ू रखना

अातिश बहावलपुरी

तुम्हें गिला ही सही हम तमाशा करते हैं

आतिफ़ कमाल राना

मानूस हो गए हैं ग़म-ए-ज़िंदगी से हम

आसी रामनगरी

असीरान-ए-क़फ़स ऐसा तो हो तर्ज़-ए-फ़ुग़ाँ अपना

आसी रामनगरी

तेरी ख़बर मिल जाती थी

आशुफ़्ता चंगेज़ी

ख़ुदा की जगह ख़ाली है

आशुफ़्ता चंगेज़ी

अक़्द-नामे

आशुफ़्ता चंगेज़ी

आवारा परछाइयाँ

आशुफ़्ता चंगेज़ी

ये भी नहीं बीमार न थे

आशुफ़्ता चंगेज़ी

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