इश्क़ के फ़न नीं हूँ मैं अवधूत
तिरे दर पे बिठा हूँ मल के भभूत
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रक़ीबान-ए-सियह-रू शहर-ए-देहली के मुसाहिब हैं
जो तूँ मुर्ग़ा नहीं है ऐ ज़ाहिद
जने देखा सो ही बौरा हुआ है
सुनाया यार नीं आ कर दो तारा
जब करें मुझ तिरे का ख़्याल अँखियाँ
तेरा ही मैं गदा हूँ मेरा तू शाह बस है
इश्क़ का तिफ़्ल गिर ज़मीं ऊपर
शराब लाल-ए-लब-ए-दिल-बराँ है मुझ कूँ मुबाह
कमाँ अबरू निपट शह-ज़ोर हैगा
इश्क़ है इश्क़-ए-पाक-बाज़ी का
न होवे क्यूँ के गर्दूं पे सदा दिल की बुलंद अपनी
मिरा दिल मुब्तला है झाँवली का