मख़गां Poetry (page 6)

कोई अच्छा नहीं होता है बरी चालों से

हैदर अली आतिश

ख़्वाहाँ तिरे हर रंग में ऐ यार हमीं थे

हैदर अली आतिश

फ़रेब-ए-हुस्न से गब्र-ओ-मुसलमाँ का चलन बिगड़ा

हैदर अली आतिश

दौलत-ए-हुस्न की भी है क्या लूट

हैदर अली आतिश

इन गेसुओं में शाना-ए-अरमाँ न कीजिए

हफ़ीज़ जालंधरी

राज़-ए-सर-बस्ता मोहब्बत के ज़बाँ तक पहुँचे

हफ़ीज़ होशियारपुरी

तुम वफ़ा का एवज़ जफ़ा समझे

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

खोल दी है ज़ुल्फ़ किस ने फूल से रुख़्सार पर

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

मातम-ए-दीद है दीदार का ख़्वाहाँ होना

ग़ुलाम मौला क़लक़

सताइश-गर है ज़ाहिद इस क़दर जिस बाग़-ए-रिज़वाँ का

ग़ालिब

सद जल्वा रू-ब-रू है जो मिज़्गाँ उठाइए

ग़ालिब

सब कहाँ कुछ लाला-ओ-गुल में नुमायाँ हो गईं

ग़ालिब

रश्क कहता है कि उस का ग़ैर से इख़्लास हैफ़

ग़ालिब

क़तरा-ए-मय बस-कि हैरत से नफ़स-परवर हुआ

ग़ालिब

फिर कुछ इक दिल को बे-क़रारी है

ग़ालिब

पा-ब-दामन हो रहा हूँ बस-कि मैं सहरा-नवर्द

ग़ालिब

नहीं है ज़ख़्म कोई बख़िये के दर-ख़ुर मिरे तन में

ग़ालिब

न गुल-ए-नग़्मा हूँ न पर्दा-ए-साज़

ग़ालिब

मुद्दत हुई है यार को मेहमाँ किए हुए

ग़ालिब

हुजूम-ए-नाला हैरत आजिज़-ए-अर्ज़-ए-यक-अफ़्ग़ँ है

ग़ालिब

हुजूम-ए-ग़म से याँ तक सर-निगूनी मुझ को हासिल है

ग़ालिब

हर क़दम दूरी-ए-मंज़िल है नुमायाँ मुझ से

ग़ालिब

दीवानगी से दोश पे ज़ुन्नार भी नहीं

ग़ालिब

बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना

ग़ालिब

अब अक्सर चुप चुप से रहें हैं यूँही कभू लब खोलें हैं

फ़िराक़ गोरखपुरी

मोहब्बत का दिया ऐसे बुझा था

फ़रह इक़बाल

मज़दूर औरतें

फख्र ज़मान

किसी के शिकवा-हा-ए-जौर से वाक़िफ़ ज़बाँ क्यूँ हो

एजाज़ वारसी

निगाह-ए-यार सूँ हासिल है मुझ कूँ मय-नोशी

दाऊद औरंगाबादी

मुझे ऐ अहल-ए-काबा याद क्या मय-ख़ाना आता है

दाग़ देहलवी

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