मख़गां Poetry (page 2)

जोश पर थीं सिफ़त-ए-अब्र-ए-बहारी आँखें

तअशशुक़ लखनवी

कराची का ट्रैफ़िक

सय्यद मोहम्मद जाफ़री

ग़म के तारीक उफ़ुक़ पर 'आबिद'

सय्यद आबिद अली आबिद

मय हो साग़र में कि ख़ूँ रात गुज़र जाएगी

सय्यद आबिद अली आबिद

गर्दिश-ए-जाम नहीं रुक सकती

सय्यद आबिद अली आबिद

मस्जिद अबरू में तेरी मर्दुमुक है जिऊँ इमाम

सिराज औरंगाबादी

क़द तिरा सर्व-ए-रवाँ था मुझे मालूम न था

सिराज औरंगाबादी

कल सीं बे-कल है मिरा जी यार कूँ देखा न था

सिराज औरंगाबादी

है जुम्बिश-ए-मिज़्गाँ में तिरी तीर की आवाज़

सिराज औरंगाबादी

गुल-रुख़ों ने किए हैं सैर का ठाट

सिराज औरंगाबादी

दिल-ए-आईना-सामाँ पारा पारा कर के देखा जाए

सिद्दीक़ मुजीबी

पूछते क्या हो जो हाल-ए-शब-ए-तन्हाई था

शिबली नोमानी

यूसुफ़ ही ज़र-ख़रीदों में फ़िरोज़-बख़्त था

शेर मोहम्मद ख़ाँ ईमान

ये इक़ामत हमें पैग़ाम-ए-सफ़र देती है

ज़ौक़

क़ुफ़्ल-ए-सद-ख़ाना-ए-दिल आया जो तू टूट गए

ज़ौक़

निगह का वार था दिल पर फड़कने जान लगी

ज़ौक़

न करता ज़ब्त मैं नाला तो फिर ऐसा धुआँ होता

ज़ौक़

कल गए थे तुम जिसे बीमार-ए-हिज्राँ छोड़ कर

ज़ौक़

जो कुछ कि है दुनिया में वो इंसाँ के लिए है

ज़ौक़

हुए क्यूँ उस पे आशिक़ हम अभी से

ज़ौक़

हंगामा गर्म हस्ती-ए-ना-पाएदार का

ज़ौक़

गईं यारों से वो अगली मुलाक़ातों की सब रस्में

ज़ौक़

बर्क़ मेरा आशियाँ कब का जला कर ले गई

ज़ौक़

बलाएँ आँखों से उन की मुदाम लेते हैं

ज़ौक़

अज़ीज़ो इस को न घड़ियाल की सदा समझो

ज़ौक़

आँख उस पुर-जफ़ा से लड़ती है

ज़ौक़

मिसाल-ए-शोला-ओ-शबनम रहा है आँखों में

शाज़ तमकनत

कोई तन्हाई का एहसास दिलाता है मुझे

शाज़ तमकनत

दर्द में जब कमी सी होती है

शातिर हकीमी

किसी से पूछें कौन बताए किस ने महशर देखा है

शमीम तारिक़

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