मख़गां Poetry (page 7)

साज़-ए-हस्ती का अजब जोश नज़र आता है

बिस्मिल इलाहाबादी

ख़याल-ए-नावक-ए-मिज़्गाँ में बस हम सर पटकते हैं

भारतेंदु हरिश्चंद्र

चश्म-ए-हसीं में है न रुख़-ए-फ़ित्ना-गर में है

बहज़ाद लखनवी

न सुनो मेरे नाले हैं दर्द-भरे दार-ओ-असरे आह-ए-सहरे

बेदम शाह वारसी

मुबारक साक़ी-ए-मस्ताँ मुबारक

बेदम शाह वारसी

मैं तिरे डर से रो नहीं सकता

बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान

ये रुख़-ए-यार नहीं ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ के तले

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

शाहिद-ए-ग़ैब हुवैदा न हुआ था सो हुआ

बाक़र आगाह वेलोरी

लब-ए-जाँ-बख़्श के मीठे का तेरे जो मज़ा पाया

बाक़र आगाह वेलोरी

हम न बुत-ख़ाने में ने मस्जिद-ए-वीराँ में रहे

बहराम जी

लड़ा कर आँख उस से हम ने दुश्मन कर लिया अपना

ज़फ़र

है दिल को जो याद आई फ़लक-ए-पीर किसी की

ज़फ़र

मैं वफ़ा का सौदागर

अज़ीज़ क़ैसी

वो निगाहें क्या कहूँ क्यूँ कर रग-ए-जाँ हो गईं

अज़ीज़ लखनवी

मुसीबत थी हमारे ही लिए क्यूँ

अज़ीज़ लखनवी

एक ही ख़त में है क्या हाल जो मज़कूर नहीं

अज़ीज़ लखनवी

दिल का छाला फूटा होता

अज़ीज़ लखनवी

ज़ब्त करना न कभी ज़ब्त में वहशत करना

अय्यूब ख़ावर

तिलिस्म-ए-इस्म-ए-मोहब्बत है दरपय-ए-दर-ए-दिल

अय्यूब ख़ावर

नुमाइश में

असरार-उल-हक़ मजाज़

गुरेज़

असरार-उल-हक़ मजाज़

अयादत

असरार-उल-हक़ मजाज़

आज

असरार-उल-हक़ मजाज़

देख के अर्ज़ां लहू सुर्ख़ी-ए-मंज़र ख़मोश

असलम महमूद

वक़्त का कुछ रुका सा धारा है

असलम आज़ाद

उठ चुका दिल मिरा ज़माने से

अशरफ़ अली फ़ुग़ाँ

बुत-परस्ती ने किया आशिक़-ए-यज़्दाँ मुझ को

अरशद अली ख़ान क़लक़

बे-ज़बानों को भी गोयाई सिखाना चाहिए

अरशद अली ख़ान क़लक़

अदा से देख लो जाता रहे गिला दिल का

अरशद अली ख़ान क़लक़

नक़ाब उल्टा है शम्ओं' ने सितारो तुम तो सो जाओ

अनीस कैफ़ी

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